Wednesday, March 30, 2011

देश-विदेश के पर्यटकों ने दिखाई छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों में रूचि

देश-विदेश के पर्यटकों को छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों के प्रति आकर्षित करने के उद्देश्य से कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरू में आयोजित छह दिवसीय स्वदेशी मेले में छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल द्वारा भी मंडप सजाया गया। मंडप में पहुंचे पर्यटकों को छत्तीसगढ़ के पर्यटन आकर्षणों की जानकारी विभिन्न प्रचार माध्यमों से दी गयी। डिस्कवरी चैनल द्वारा छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों पर बनाई गई डाक्यूमेट्री फिल्म का प्रदर्शन मंडप में किया गया। इसके अलावा बस्तर के प्रमुख पर्यटन स्थलों की झलकी प्रोजेक्टर के माध्यम से पर्यटकों के सामने प्रस्तुत की गई। स्वदेशी मेले में आए पर्यटकों ने जहां छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों में रूचि दिखाई, वहीं स्थानीय टूर एवं टे्रवल्स ऑपरेटरों ने छत्तीसगढ़ में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा ऑपरेटरों को दी जा रही सुविधाओं की जानकारी ली।
    ज्ञातव्य है कि भारतीय विपणन विकास केन्द्र द्वारा बैंगलुरू के त्रिपुरवंशी पैलेस मैकेरी सर्कल में 11 मार्च 2010 से स्वदेशी मेले का आयोजन किया गया। मेले में छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल का भी मंडप सजा था। मंडप में पर्यटकों को छत्तीसगढ़ की पर्यटन विशेषताओं, पर्यटकों के लिए उपलब्ध आवास तथा परिवहन सुविधाओं की जानकारी दी गयी। इसके अलावा प्रचार साहित्य के माध्यम से भी पर्यटकों ने छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों की जानकारी ली। मंडप में पहुंचे विशिष्ट जनों को ट्रेवल्स गाईड और सी.डी. भेंट कर छत्तीसगढ़ भ्रमण करने के लिए आमंत्रित किया गया।

Friday, January 7, 2011

सिरपुर दुनिया की अनमोल धरोहर

सिरपुर न केवल छत्तीसगढ़ और भारत बल्कि पूरी दुनिया की एक अनमोल ऐतिहासिक धरोहर है। यहां हो रहे उत्खनन से लगातार नये और महत्वपूर्ण तथ्य सामने आ रहे हैं।
    बौध्द, जैन. वैष्णव और शैव संस्कृतियों के अद्भुत समन्वय का प्रतीक सिरपुर ज्ञान-विज्ञान, आध्यात्म और आस्था का प्रमुख केन्द्र भी है। दुनिया का इतिहास गवाह है कि जहां-जहां भी ज्ञान-विज्ञान के साथ संस्कृतियों का जुड़ाव हुआ है, वहां विकास भी उसी के अनुरूप हुआ है। छत्तीसगढ़ का इतिहास काफी समृध्द रहा है। भारत यात्रा के दौरान चीन के महान पर्यटक व्हेनसांग भी यहां आए थे। उन्होंने श्रीपुर के नाम से प्रसिध्द इस तत्कालीन शहर के वैभव, महत्व और गौरव के बारे में विस्तार से लिखा है। उत्खनन में यहां अनाज के बड़े भण्डार और आयुर्वेद रसायन शास्त्र की प्रयोगशाला मिली है। शैव, वैष्णव, जैन और बौध्द जैसे अलग-अलग मतों के मानने वाले यहां परस्पर मेल-मिलाप और समन्वय की भावना से रहते थे। सामाजिक समरसता का इससे अच्छा उदाहरण दुनिया में शायद और कहीं देखने को नहीं मिलता। इस दृष्टि से पांचवी-छठवीं शताब्दी में भी सिरपुर पूरी दुनिया को रास्ता दिखाता था और 21 शताब्दी में भी रास्ता दिखाता रहेगा।

Thursday, January 6, 2011

पर्यटन मानचित्र पर तेजी से उभर रहा कबीरधाम

ऐतिहासिक, पुरातात्विक, पौराणिक-धार्मिक, प्राकृतिक महत्व के  पर्यटन स्थलो के द्रुत विकास  से कबीरधाम जिला पर्यटकों का पसंदीदा जगह बन गया है। मैकल की रानी चिल्फी घाटी व सरोदादर प्रकृति प्रेमियाें को अपनी ओर खींचता है तो  छत्तीसगढ़ का खजुराहो भोरमदेव व राष्ट्रीय धरोहर पचराही सैलानियों के आकर्षण का विशेष केंद्र बन गये है। जिले मे आने वाले सैलानियों की संख्या मे साल दर साल भारी वृध्दि हो रही है। श्रावण मास के दौरान इस साल 1 लाख श्रध्दालु भोरमदेव मंदिर दर्शन के लिये आये। जिले में पर्यटन सुविधाओं के सुनियोजित विकास से देश के पर्यटन मानचित्र पर कबीरधाम तेजी से उभर रहा है।
     जिले मे पर्यटन स्थलों तक पहुंचने पक्की सड़क, पहुंच मार्ग बनाया गया है व पर्यटन स्थल मे पेयजल सुविधा व पर्यटन स्थलों का सौंदर्यीकरण किया गया है। उन्होने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य पर्यटन मंडल,पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष,नरेगा व समविकास योजना के अंतर्गत पर्यटन स्थलों का तेजी से विकास किया जा रहा है। चरणतीरथ, रानीदहरा, कुंअर अक्षरिया, जोगी गुफा, बम्हणदेई गुफा, कामठी, खरहट्टा आदि स्थलों मे जरूरत के मुताबिक सीढ़ी, रेलिंग, चबूतरा व पगोड़ा बनाकर विकास किया गया है।
जिले मे पर्यटन सुविधाओं के विकास पर एक नजर

भोरमदेव- जिला मुख्यालय से मात्र 16 किमी दूर मैकल पर्वत श्रेणी की प्राकृतिक हरीतिमा के बीच स्थित भोरमदेव मंदिर देश के प्रमुख पर्यटन स्थलों मे से एक है। यहां आधुनिक संग्रहालय निर्माण,भोरमदेव उद्यान व स्मृति वन के विकास से सैलानियों का आकर्षण बढ़ा है। भोरमदेव आने वाले श्रध्दालुओं की सुविधा के लिये छपरी टोल-टेक्स नाका को बंद किया गया है अभिषेक की सुविधा भी प्रारंभ की गई है। मड़वा  महल, छेरकी महल जाने वाले पर्यटकाें की संख्या मे वृध्दि हुई है।
चरणतीरथ-जिले के बोडला विकासखण्ड में तरेगांव से लगभग 22 किलो मीटर की दूरी पर स्थित प्राचीन चरणतीर्थ की पहाडी में 470 सीढियों की चढाई के बाद मैकल चट्टानो से बने गुफा के दर्शन होते हैं। गुफा के ठीक ऊपर लगभग 15 फीट की सीढ़ी चढाई करने के बाद एक और गुफा स्थित है। इसके भीतर श्रीराम सीता और लक्ष्मण की प्राचीन मूर्तियाें के दर्शन होते हैं। प्रतिवर्ष इस स्थान में मकर संक्रांति के दिन मेला भी लगता है। चरणतीर्थ में गुफा तक पहुंच सुगम बनाने सीढ़ियों का चौड़ीकरण, विश्राम हेतु सीमेंट की कुर्सियां, ऊपर गुफा के पास साधुओं के लिये कुटियां, नीचे मेला स्थल में पेयजल व्यवस्था और विश्राम के लिये शेड बनाया जा रहा है।
पचराही- विकासखण्ड बोड़ला में स्थित ग्राम पचराही में उत्खनन से छत्तीसग़ढ के पुरातनकालीन इतिहास प्रकाश में आ रहे हैं। पचराही मे उत्खनन में ढाई हजार वर्ष पुराना बैल मिला है साथ ही लौहयुग के चूल्हे के अवशेष मिले हैं, उत्खनन में भगवान की गणेश सबसे छोटी प्रतिमा मिली जो लगभग 1500 साल पुरानी है। उत्खनन में तीसरी सदी के मौर्य कालीन अवशेष मिले हैं। प्राचीन स्वर्ण सिक्के प्राप्त हुए है, जो दुर्लभ है। इसी प्रकार फण्ाीनागवंश के 15वीं पीढ़ी के राजा यशोराज देव का चांदी का दुर्लभ सिक्का मिला है।
रामचुवा- रामचुआ भव्य पर्यटन स्थल के रूप मे विकसित हो रहा है। यहां शिव,राम-जानकी, हनुमान व लक्ष्मीनारायण के अष्टमंदिर हैं। यहां पर भव्य जलकुंड, पाथवे बनाकर रामचुवा का विकास किया जा रहा है। यहां प्राकृतिक जलस्रोत से निर्मित एक कुंड है जिसमे पानी कभी सूखता नही है। भोरमदेव मंदिर दर्शन के बाद पर्यटक रामचुवा के मनोहारी दृश्य का आनंद लेने जरूर आते हैं। रामचुवा कवर्धा से 8 किमी पश्चिम मे जैतपुरी ग्राम के निकट मैकल पहाड़ की तलहटी मे स्थित है।
सरोदादादर-जिला मुख्यालय से 46 किमी दूर कवर्धा चिल्फी मार्ग मे मैकल की चोटी पर यह दर्शनीय स्थल स्थित है। यहां सरोदा दादर रिसोर्ट का निर्माण किया जा रहा है। सैलानी यहां पहाड़ों की सुंदरता,सूर्यास्त के दुर्लभ दृश्य,पल-पल बदलते मौसम व बादलों का आनंद लेने आते हैं। यह स्थल ट्रेकिंग के लिये भी उपयुक्त बताया जाता है।
रानीदहरा- जिला मुख्यालय से जबलपुर मार्ग पर 35 किमी दूरी पर रानीदहरा जलप्रपात स्थित है। प्रकृति प्रदत्त अनुपम सौंदर्य के स्थल रानी दहरा की सुंदरता को और निखारने के लिए कलेक्टर ने रानी दहरा जल प्रपात तक पहुंचने के लिए डब्ल्यू.बी.एम. सडक निर्माण करने कहा है। मैकल पहाड़ों से कल-कल बहता झरने का पानी नीचे एकत्र होता है।
चिल्फी घाटी-मैकल की रानी चिल्फी घाटी जिले का खूबसूरत हिल स्टेशन हैं। चिल्फी घाटी मे जाड़े के दिन मे कड़ाके की ठंड पड़ती है। यहां चिरईयां के फूल,पहाड़ों पर ऊंचे-ऊंचे पेंड़,बादलों का अद्भुत नजारा,बैगा आदिवासी जीवन आकर्षित करता है। चिल्फी घाटी क्षेत्र मे 27 नये स्टॉप डैम बनाकर यहां जलसंरक्षण व जलसंवर्धन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे यहां की हरियाली बरकरार रहेगी व वन्यजीवों व लोगों के लिये निस्तार की सुविधा हो रही है।
बैगा आदिवासी जनजीवन- जिले के बोड़ला व पंडरिया के वनांचल मे बैगा आदिवासी निवासरत हैं। बैगाओ को विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा प्राप्त है। प्रसिध्द ब्रिटिश मानवशास्त्री वेरियर एल्विन ने अपनी किताब द बैगा मे बैगाओं को संसार की सबसे हंसमुख जनजाति कहा है। बैगाओं का रहन-सहन,वेषभूषा,रीति-रिवाज,लोकनृत्य,सरल जीवन शैली लोगों को आकर्षित करता है। जिले मे बैगाओं के  लिये बैगा आवास,बाड़ी विकास व खेत को उपजाऊ बनाने का कार्य किया गया है।
वृंदावन गार्डन- सरोधा बांध के नीचे मनमोहक वृंदावन गार्डन विकसित किया जा रहा है। वृंदावन गार्डन के दूसरे चरण के निर्माण कार्य जारी है। वृंदावन गार्डन मे एक्वेरियम ,पगोड़ा, व छतरी लगायी जा रही है। वृदावन गार्डन की हरियाली बढ़ायी जा रही है। वृंदावन के बोटिंग पाईंट, सनराईस पाइंट और सनसेट पाईट, पॉली हाऊस मनोरंजन के साधनों से परिपूर्ण, कृत्रिम जल प्रपात, नहर ब्यू पाईंट लोगों के आकर्षण के केंद्र हैं।
    जिले मे पर्यटन की दृष्टि से कई महत्वपूर्ण स्थल है। जहां का भ्रमण कर  छत्तीसगढ की समृध्द सांस्कृतिक धरोहर, धार्मिक और प्राकृतिक स्थल का आनंद लिया जा सकता है। सूतियापाट, बखारी गुफा, झिरना, दशरथ तालाब, सुकझर, भंवरटोक, सूपखार, सुकझर, चिल्फी घाटी, सरोदा बांध, जलेश्वर महादेव डोगरिया और बहनाखोदरा उर्जा शिक्षा पार्क,वनांचल के साप्ताहिक हाटबाजार दर्शनीय है।

Wednesday, January 5, 2011

पर्यटकों को लुभाते छत्तीसगढ़ के राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य

छत्तीसगढ़ अपनी संपन्न जैव विविधता और वन्य प्राणियों के कारण शुरू से ही वन्यजीव प्रेमियों और पर्यटकों के लिए प्रिय रहा है। आज भी यहां के वन्य जीव अनुपम हैं। वनों को वास्तविक स्वरूप में देखने का अवसर केवल यहां राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में ही मिलता है जहां वन्य जीवों को उनके नैसर्गिक वातावरण में देखा जा सकता है। छत्तीसगढ़ के इन राष्ट्रीय उद्यानों में बाघ, वनभैंसा जैसे दुर्लभ जंगली जानवरों के अलावा अनेक वन्यप्राणियों को प्राकृतिक अवस्था में विचरण करते हुए देखा जा सकता है। वन्य प्राणियों को प्राकृतिक अवस्था में देखने आने वाले पर्यटकों के लिए यहां पर्यटक विश्राम गृह और पर्यटक निवास निर्मित किए गए हैं जिनमें निर्धारित दर के भुगतान पर आरक्षण कराया जा सकता है। कई संरक्षित क्षेत्रों के आस-पास निजी रिसोर्ट भी संचालित हैं। राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभयारण्यों में पर्यटकों को भ्रमण कराने के लिए निर्धारित दर पर गाईड की व्यवस्था भी उपलब्ध है। 
 इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर संभाग के अंतर्गत  दो हजार 800 वर्ग किलोमीटर में पसरा हुआ है। यह जिला मुख्यालय बीजापुर से भोपालपट्टनम मार्ग पर 50 किलोमीटर की दूरी पर है। इस राष्ट्रीय उद्यान का नाम बस्तर अंचल की जीवनदायिनी इंद्रावती नदी के नाम पर रखा गया है जो इस उद्यान से होकर बहती है। यह उद्यान वनभैंसो का निवास स्थल है। वर्तमान में देश में केवल काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान असम तथा छत्तीसगढ़ के उदंती और पामेड़ अभयारण्य में ही वनभैंसे मिलते हैं। इंद्रावती उद्यान क्षेत्र में बाघों की अच्छी संख्या होने के कारण इसे प्रोजेक्ट टायगर योजना में शामिल किया गया है। वनभैंसा और बाघ के अलावा यहां तेन्दुआ, नीलगाय, चीतल, सांभर, भालू, जंगली सुअर, गौर, मोर आदि वन्यप्राणी इस राष्ट्रीय उद्यान में देखे जा सकते हैं। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान जगदलपुर से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। करीब दो सौ वर्ग किमी क्षेत्र में003_041209 विस्तारित इस उद्यान की स्थापना 1983 में हुई थी। यह राष्ट्रीय उद्यान रंग-बिरंगी तितलियां, गुफाओं एवं झरनों के लिए विख्यात है। छत्तीसगढ़ का राजकीय पक्षी 'पहाड़ी मैना' यहां बहुतायत में देखी जा सकती है। पहाड़ी मैना इंसान के आवाज की हू-ब-हू नकल करती है। यहां स्थित भू-गर्भीय कोटमसर गुफा, कैलाश गुफा, दंडक गुफा पर्यटकों को सम्मोहन की दुनिया में ले जाती हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान में कांगेर नदी की विभिन्न शाखाएं साल भर बहती हैं। ऐसी मान्यता है कि देश का सघनतम वन इस राष्ट्रीय उद्यान में सुरक्षित हैं। यहां के जंगलों में 90 फीसदी वृक्ष साल वनों के हैं। इस उद्यान का एक प्रमुख आकर्षण यहां स्थित तीरथगढ़ जल-प्रपात है। जल-प्रपात के सुंदर दृश्यों का अवलोकन करने के लिए यहां पर्यटक शेड और वॉच-टावर बनाए गए हैं।गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान बैकुण्ठपुर जिला कोरिया में बैकुण्ठपुर-सोनहत मार्ग पर 35 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। राज्य बनने के बाद वर्ष 2001 में इस राष्ट्रीय उद्यान का निर्माण किया गया था। ऊंची-ऊंची पहाड़ियों और नदियों से घिरे इस उद्यान का क्षेत्रफल एक हजार चार सौ वर्ग किलोमीटर है। इस राष्ट्रीय उद्यान से होकर हसदेव, गोपद एवं लोधार नदियां बहती हैं। हसदेव नदी का उद्गम इस राष्ट्रीय उद्यान के अंदर है। इस राष्ट्रीय उद्यान के भीतर 35 राजस्व ग्राम स्थित हैं जिनमें प्रदेश की आदिम जनजातियां चेरवा, पाण्डो, खैरवार जनजातियां निवास करती हैं। राष्ट्रीय उद्यान के आसपास अन्य दर्शनीय स्थलों में हसदेव नदी का उद्गम स्थल आमापानी, खेकड़ा माड़ा हिलटॉप, नीलकंठ जल-प्रपात, च्यूल जल-प्रपात प्रमुख हैं।     
राष्ट्रीय उद्यानों के अलावा प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में ग्यारह अभयारण्य हैं। राज्य की राजधानी रायपुर से सबसे नजदीक 001_041209लगभग सौ किलोमीटर दूर बारनवापारा अभयारण्य स्थित है। अभयारण्य के बीच स्थित बार और नवापारा वन्यग्रामों के आधार पर इसका नामकरण बारनवापारा अभयारण्य हुआ है। सन् 1976 से अस्तित्व में आए इस वन्य प्राणी संरक्षित क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 245 वर्ग किलोमीटर है। वन प्राणियों की प्रचुरता और राजधानी के नजदीक होने के कारण यह राज्य का एक प्रमुख अभयारण्य बन गया है। रायपुर से बारनवापारा पहुंचने के लिए रायपुर-सराईपाली राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-6 पर रायपुर से 72 किलोमीटर पर स्थित ग्राम पटेवा से 28 किलोमीटर कच्चे मार्ग पर चलकर अभयारण्य के मुख्यालय तक पहुंचा जा सकता है। बारनवापारा अभयारण्य में बाघ, तेन्दुआ, गौर, भालू, सांभर, चीतल, नीलगाय, कोटरी, चौसिंघा, जंगली कुत्ता, मूषक मृग जैसे वन्य प्राणी बहुतायत में पाए जाते हैं एवं आसानी से दिखाई भी देते हैं। इस अभयारण्य में पर्यटकों को आकर्षित करने की पर्याप्त क्षमता है। इसके आसपास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल होने के कारण बारनवापारा अभयारण्य की नैसर्गिक पर्यटन क्षमता में और वृध्दि हो जाती है। इसी तरह रायपुर से कोई डेढ़ सौ किलोमीटर दूर उडीसा से लगे उदन्ती और सीतानदी ( जिला धमतरी ) अभयारण्य है। उदंती अभयारण्य दुर्लभ वनभैंसा का प्राकृतिक आवास स्थल है। 
बिलासपुर जिले में मैकल पहाड़ियों के बीच साढ़े पांच सौ वर्ग किलोमीटर इलाके में अचानकमारअभयारण्य फैला हुआ है। बिलासपुर जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस अभयारण्य के साल वनों की गिनती देश के सर्वश्रेष्ठ साल वनों में की जाती है। सघन वनों से आच्छादित इस अभयारण्य में बाघ और तेंदूआ जैसे मांसाहारी वन्य जीवों के अलावा गौर, सांभर, चीतल, चौसिंघा, बार्किग डियर, भालू, उड़ने वाली गिलहरी,सोनकुत्ता बहुतायत से पाए जाते हैं। आदिवासी बहुल सरगुजा जिले मे जिला मुख्यालय अम्बिकापुर से सौ किलोमीटर की दूरी पर तमोर पिंगला अभयारण्य है। ये पूरा क्षेत्र पहाड़ी, घने जंगलों और नदियों से घिरे होने के कारण मनोरम है। बाघ, तेंदूआ और अन्य शाकाहारी वन्य प्राणियों के अलावा राष्ट्रीय पक्षी मोर, तोता, जंगली मुर्गा, दूधराज, तीतर मैना आदि अभयारण्य के लिए खास आकर्षण का केन्द्र होते हैं। इसके अलावा अम्बिकापुर-रामानुजगंज मार्ग पर 58 किलोमीटर की दूरी पर सेमरसोत अभयारण्य है। सेमरसोत नदी के कारण इस अभयारण्य का नाम सेमरसोत पड़ा है। अभयारण्य के प्राकृतिक सुंदरता का अवलोकन करने के लिए यहां अनेक स्थानों पर वॉच टावरों का निर्माण किया गया है। इसके साथ ही कबीरधाम जिले में स्थित भोरमदेव अभयारण्य, रायगढ़ जिले में गोमर्डा अभयारण्य, जशपुर जिले में बादलखोल अभयारण्य और बस्तर जिले में भैरमगढ़ और पामेड़ अभयारण्य के सघन वनों में वन्य प्राणियों, पक्षियों सरीसृपों के साथ ही और बहुत कुछ देखने को मिलता है।

Tuesday, January 4, 2011

सैलानियों को आकर्षित करेगा शहीद गुण्डाधूर टूरिस्ट रिसॉर्ट

बस्तर के पर्यटन स्थल यहां आने वाले सैलानियों को सहज ही आकर्षित करते हैं। इस दिशा में जगदलपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर नेतानार में राष्ट्रीय कांगेर घाटी उद्यान के अन्तर्गत नवनिर्मित शहीद गुण्डाधूर टूरिस्ट-रिसॉर्ट पर्यटकों को आकर्षित करने में मददगार साबित होगा।
               बस्तर का नैसर्गिक सौंदर्य पूरे देश-दुनिया में विख्यात है। यहां की जैवविविधता दुर्लभता लिये हुए है। उल्लेखनीय है कि कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान का भ्रमण करने के लिए न केवल पर्यटक ही आते हैं, अपितु अनेक जीव और वनस्पति वैज्ञानिक तथा अनुसंधान और शोधकर्ता भी इस क्षेत्र में आकर अध्ययन और शोध कार्य करते हैं।
              कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के संचालक श्री एस.वेंकटाचलम ने बताया कि नेतानार टूरिस्ट-रिसॉर्ट में तीन 'कॉटेज' निर्मित किए गए हैं। दो वर्ष पूर्व केवल दो 'कॉटेज' बनाए गए थे। इस प्रकार कुल पांच कमरों का यह रिसॉर्ट है। इस टूरिस्ट-रिसॉर्टे परिसर में खुबसूरत पैगोडा स्ट्रक्चर और कांक्रीट-पाथवे भी निर्मित किए गए हैं। प्रकृति के नजदीक के दृश्यों को बस्तरशिल्प के जरिए खूबसूरती से संजोया गया है। उन्होंने बताया गया कि इस टूरिस्ट-रिसॉर्ट में पर्यटकों को ठहरने की भी सुविधा उपलब्ध होगी। निर्धारित शुल्क अदाकर और इसकी अग्रिम बुकिंग कराकर टूरिस्ट-रिसॉर्ट में रूका जा सकता है। इस टूरिस्ट-रिसॉर्ट के नजदीक ही कैलाश गुफा है जिसका दर्शन किया जा सकता है।