छत्तीसगढ़ अपनी संपन्न जैव विविधता और वन्य प्राणियों के कारण शुरू से ही वन्यजीव प्रेमियों और पर्यटकों के लिए प्रिय रहा है। आज भी यहां के वन्य जीव अनुपम हैं। वनों को वास्तविक स्वरूप में देखने का अवसर केवल यहां राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में ही मिलता है जहां वन्य जीवों को उनके नैसर्गिक वातावरण में देखा जा सकता है। छत्तीसगढ़ के इन राष्ट्रीय उद्यानों में बाघ, वनभैंसा जैसे दुर्लभ जंगली जानवरों के अलावा अनेक वन्यप्राणियों को प्राकृतिक अवस्था में विचरण करते हुए देखा जा सकता है। वन्य प्राणियों को प्राकृतिक अवस्था में देखने आने वाले पर्यटकों के लिए यहां पर्यटक विश्राम गृह और पर्यटक निवास निर्मित किए गए हैं जिनमें निर्धारित दर के भुगतान पर आरक्षण कराया जा सकता है। कई संरक्षित क्षेत्रों के आस-पास निजी रिसोर्ट भी संचालित हैं। राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभयारण्यों में पर्यटकों को भ्रमण कराने के लिए निर्धारित दर पर गाईड की व्यवस्था भी उपलब्ध है।
इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर संभाग के अंतर्गत दो हजार 800 वर्ग किलोमीटर में पसरा हुआ है। यह जिला मुख्यालय बीजापुर से भोपालपट्टनम मार्ग पर 50 किलोमीटर की दूरी पर है। इस राष्ट्रीय उद्यान का नाम बस्तर अंचल की जीवनदायिनी इंद्रावती नदी के नाम पर रखा गया है जो इस उद्यान से होकर बहती है। यह उद्यान वनभैंसो का निवास स्थल है। वर्तमान में देश में केवल काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान असम तथा छत्तीसगढ़ के उदंती और पामेड़ अभयारण्य में ही वनभैंसे मिलते हैं। इंद्रावती उद्यान क्षेत्र में बाघों की अच्छी संख्या होने के कारण इसे प्रोजेक्ट टायगर योजना में शामिल किया गया है। वनभैंसा और बाघ के अलावा यहां तेन्दुआ, नीलगाय, चीतल, सांभर, भालू, जंगली सुअर, गौर, मोर आदि वन्यप्राणी इस राष्ट्रीय उद्यान में देखे जा सकते हैं। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान जगदलपुर से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। करीब दो सौ वर्ग किमी क्षेत्र में003_041209 विस्तारित इस उद्यान की स्थापना 1983 में हुई थी। यह राष्ट्रीय उद्यान रंग-बिरंगी तितलियां, गुफाओं एवं झरनों के लिए विख्यात है। छत्तीसगढ़ का राजकीय पक्षी 'पहाड़ी मैना' यहां बहुतायत में देखी जा सकती है। पहाड़ी मैना इंसान के आवाज की हू-ब-हू नकल करती है। यहां स्थित भू-गर्भीय कोटमसर गुफा, कैलाश गुफा, दंडक गुफा पर्यटकों को सम्मोहन की दुनिया में ले जाती हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान में कांगेर नदी की विभिन्न शाखाएं साल भर बहती हैं। ऐसी मान्यता है कि देश का सघनतम वन इस राष्ट्रीय उद्यान में सुरक्षित हैं। यहां के जंगलों में 90 फीसदी वृक्ष साल वनों के हैं। इस उद्यान का एक प्रमुख आकर्षण यहां स्थित तीरथगढ़ जल-प्रपात है। जल-प्रपात के सुंदर दृश्यों का अवलोकन करने के लिए यहां पर्यटक शेड और वॉच-टावर बनाए गए हैं।गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान बैकुण्ठपुर जिला कोरिया में बैकुण्ठपुर-सोनहत मार्ग पर 35 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। राज्य बनने के बाद वर्ष 2001 में इस राष्ट्रीय उद्यान का निर्माण किया गया था। ऊंची-ऊंची पहाड़ियों और नदियों से घिरे इस उद्यान का क्षेत्रफल एक हजार चार सौ वर्ग किलोमीटर है। इस राष्ट्रीय उद्यान से होकर हसदेव, गोपद एवं लोधार नदियां बहती हैं। हसदेव नदी का उद्गम इस राष्ट्रीय उद्यान के अंदर है। इस राष्ट्रीय उद्यान के भीतर 35 राजस्व ग्राम स्थित हैं जिनमें प्रदेश की आदिम जनजातियां चेरवा, पाण्डो, खैरवार जनजातियां निवास करती हैं। राष्ट्रीय उद्यान के आसपास अन्य दर्शनीय स्थलों में हसदेव नदी का उद्गम स्थल आमापानी, खेकड़ा माड़ा हिलटॉप, नीलकंठ जल-प्रपात, च्यूल जल-प्रपात प्रमुख हैं।
राष्ट्रीय उद्यानों के अलावा प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में ग्यारह अभयारण्य हैं। राज्य की राजधानी रायपुर से सबसे नजदीक 001_041209लगभग सौ किलोमीटर दूर बारनवापारा अभयारण्य स्थित है। अभयारण्य के बीच स्थित बार और नवापारा वन्यग्रामों के आधार पर इसका नामकरण बारनवापारा अभयारण्य हुआ है। सन् 1976 से अस्तित्व में आए इस वन्य प्राणी संरक्षित क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 245 वर्ग किलोमीटर है। वन प्राणियों की प्रचुरता और राजधानी के नजदीक होने के कारण यह राज्य का एक प्रमुख अभयारण्य बन गया है। रायपुर से बारनवापारा पहुंचने के लिए रायपुर-सराईपाली राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-6 पर रायपुर से 72 किलोमीटर पर स्थित ग्राम पटेवा से 28 किलोमीटर कच्चे मार्ग पर चलकर अभयारण्य के मुख्यालय तक पहुंचा जा सकता है। बारनवापारा अभयारण्य में बाघ, तेन्दुआ, गौर, भालू, सांभर, चीतल, नीलगाय, कोटरी, चौसिंघा, जंगली कुत्ता, मूषक मृग जैसे वन्य प्राणी बहुतायत में पाए जाते हैं एवं आसानी से दिखाई भी देते हैं। इस अभयारण्य में पर्यटकों को आकर्षित करने की पर्याप्त क्षमता है। इसके आसपास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल होने के कारण बारनवापारा अभयारण्य की नैसर्गिक पर्यटन क्षमता में और वृध्दि हो जाती है। इसी तरह रायपुर से कोई डेढ़ सौ किलोमीटर दूर उडीसा से लगे उदन्ती और सीतानदी ( जिला धमतरी ) अभयारण्य है। उदंती अभयारण्य दुर्लभ वनभैंसा का प्राकृतिक आवास स्थल है।
बिलासपुर जिले में मैकल पहाड़ियों के बीच साढ़े पांच सौ वर्ग किलोमीटर इलाके में अचानकमारअभयारण्य फैला हुआ है। बिलासपुर जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस अभयारण्य के साल वनों की गिनती देश के सर्वश्रेष्ठ साल वनों में की जाती है। सघन वनों से आच्छादित इस अभयारण्य में बाघ और तेंदूआ जैसे मांसाहारी वन्य जीवों के अलावा गौर, सांभर, चीतल, चौसिंघा, बार्किग डियर, भालू, उड़ने वाली गिलहरी,सोनकुत्ता बहुतायत से पाए जाते हैं। आदिवासी बहुल सरगुजा जिले मे जिला मुख्यालय अम्बिकापुर से सौ किलोमीटर की दूरी पर तमोर पिंगला अभयारण्य है। ये पूरा क्षेत्र पहाड़ी, घने जंगलों और नदियों से घिरे होने के कारण मनोरम है। बाघ, तेंदूआ और अन्य शाकाहारी वन्य प्राणियों के अलावा राष्ट्रीय पक्षी मोर, तोता, जंगली मुर्गा, दूधराज, तीतर मैना आदि अभयारण्य के लिए खास आकर्षण का केन्द्र होते हैं। इसके अलावा अम्बिकापुर-रामानुजगंज मार्ग पर 58 किलोमीटर की दूरी पर सेमरसोत अभयारण्य है। सेमरसोत नदी के कारण इस अभयारण्य का नाम सेमरसोत पड़ा है। अभयारण्य के प्राकृतिक सुंदरता का अवलोकन करने के लिए यहां अनेक स्थानों पर वॉच टावरों का निर्माण किया गया है। इसके साथ ही कबीरधाम जिले में स्थित भोरमदेव अभयारण्य, रायगढ़ जिले में गोमर्डा अभयारण्य, जशपुर जिले में बादलखोल अभयारण्य और बस्तर जिले में भैरमगढ़ और पामेड़ अभयारण्य के सघन वनों में वन्य प्राणियों, पक्षियों सरीसृपों के साथ ही और बहुत कुछ देखने को मिलता है।